संधि विच्छेद
संधि विच्छेद: Overview
इस टॉपिक के अंतर्गत संधि किये गए दो शब्दों के अलग करने की प्रक्रिया को पढा जाता है। इसमें छात्र संधि विच्छेद की परिभाषा, प्रयोग एवं उदाहरणों से अवगत होते हैं।
Important Questions on संधि विच्छेद


















'गाँधीजी मानते थे कि सामाजिक या सामूहिक जीवन की ओर बढ़ने से पहले कौटुम्बिक जीवन का अनुभव प्राप्त करना आवश्यक है, इसलिए वे आश्रम-जीवन बिताते थे। वहाँ सभी एक भोजनालय में भोजन करते थे। इससे समय और धन तो बचता ही था, साथ ही सामूहिक जीवन का अभ्यास भी होता था, लेकिन यह सब होना चाहिए, समय-पालन, सुव्यवस्था और शुचिता साथ।
इस ओर लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए गाँधीजी स्वयं भी सामूहिक रसोईघर में भोजन करते थे। भोजन के समय दो बार घण्टी बजती थी। जो दूसरी घण्टी बजने तक भोजनालय में नहीं पहुँच पाता था, उसे दूसरी पंक्ति के लिए बरामदे में इन्तजार करना पड़ता था। दूसरी घण्टी बजते ही रसोईघर का द्वार बन्द कर दिया जाता था, जिससे बाद में आने वाले व्यक्ति अन्दर न आने पाएँ। एक दिन गाँधीजी पिछड़ गए। संयोग से उस दिन आश्रमवासी श्री हरिभाऊ उपाध्याय भी पिछड़ गए। जब वे वहाँ पहुँचे तो देखा कि बापू बरामदे में खड़े हैं। बैठने के लिए न बैंच है, न कुर्सी। हरिभाऊ ने विनोद करते हुए कहा, "बापूजी आज तो आप भी गुनहगारों के कठघरे में आ गए हैं।"
गाँधीजी खिलखिलाकर हँस पड़े। बोले, "कानून के सामने तो सब बराबर होते हैं न?"
हरिभाऊ जी ने कहा, "बैठने के लिए कुर्सी लाऊँ, बापू?" गाँधीजी बोले, "नहीं, उसकी जरूरत नहीं है। सजा पूरी भुगतनी चाहिए। उसी में सच्चा आनन्द है।'
गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नो में सबसे उचित विकल्प चुनिए
'रसोईघर' शब्द है:
'गाँधीजी मानते थे कि सामाजिक या सामूहिक जीवन की ओर बढ़ने से पहले कौटुम्बिक जीवन का अनुभव प्राप्त करना आवश्यक है, इसलिए वे आश्रम-जीवन बिताते थे। वहाँ सभी एक भोजनालय में भोजन करते थे। इससे समय और धन तो बचता ही था, साथ ही सामूहिक जीवन का अभ्यास भी होता था, लेकिन यह सब होना चाहिए, समय-पालन, सुव्यवस्था और शुचिता साथ।
इस ओर लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए गाँधीजी स्वयं भी सामूहिक रसोईघर में भोजन करते थे। भोजन के समय दो बार घण्टी बजती थी। जो दूसरी घण्टी बजने तक भोजनालय में नहीं पहुँच पाता था, उसे दूसरी पंक्ति के लिए बरामदे में इन्तजार करना पड़ता था। दूसरी घण्टी बजते ही रसोईघर का द्वार बन्द कर दिया जाता था, जिससे बाद में आने वाले व्यक्ति अन्दर न आने पाएँ। एक दिन गाँधीजी पिछड़ गए। संयोग से उस दिन आश्रमवासी श्री हरिभाऊ उपाध्याय भी पिछड़ गए। जब वे वहाँ पहुँचे तो देखा कि बापू बरामदे में खड़े हैं। बैठने के लिए न बैंच है, न कुर्सी। हरिभाऊ ने विनोद करते हुए कहा, "बापूजी आज तो आप भी गुनहगारों के कठघरे में आ गए हैं।"
गाँधीजी खिलखिलाकर हँस पड़े। बोले, "कानून के सामने तो सब बराबर होते हैं न?"
हरिभाऊ जी ने कहा, "बैठने के लिए कुर्सी लाऊँ, बापू?" गाँधीजी बोले, "नहीं, उसकी जरूरत नहीं है। सजा पूरी भुगतनी चाहिए। उसी में सच्चा आनन्द है।'
गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नो में सबसे उचित विकल्प चुनिए
'भोजनालय' का सन्धि-विच्छेद है: